Tuesday, September 27, 2016


मेरी कोशिश और उम्मीद पर न्याय का फरमान ...

जी हाँ, जिस हाथी को पिछले डेढ़ महीने से वन महकमें ने दोस्त बनाने की आड़ में मौत के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया था उसकी रिहाई और इलाज़ का फरमान छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जारी कर दिया है। मनमाने अफसरों की दलीलों पर न्यायमूर्तियों ने कड़ी फटकार भी लगाई है । मैंने 25 दिसंबर 2015 को अचानकमार टाइगर रिजर्व के आश्रित ग्राम बिन्दावल पहुंचकर उस हाथी को देखने की कोशिश की जिसेपकड़ लेने के बाद वन-महकमें ने अपनी पीठ काफी थपथपाई। कुछ महीने पहले अमाडोब के करीब झुण्ड से बिछड़े हाथी ने काफी उत्पात मचाया था जिसे लेकर वन-विभाग के अफसरों ने उसे पकड़कर फ्रेंडली बनाने की कवायद का शोर मचाया। जब मैं मौके पर पहुंचा तो हाथी की शक्लो-सूरत देख कर सिहर उठा। मैंने बड़ी ही सतर्कता और सितमगरों [वन कर्मियों] की नज़रों से बचते बचाते कुछ तस्वीरें लीं। जंजीर से जकड़े उस हाथी पर पल-पल होते जुल्म की हकीकत को मैंने सोशल मीडिया के जरिये सार्वजनिक किया। कई वन्य-प्रेमियों को भरोसा नहीं हुआ लेकिन हकीकत तस्वीरें ब्यान कर रहीं थी। 
शुक्रिया समाचार पत्र दैनिक भास्कर का जिसने हाथी पर होते जुल्म को बड़ी ही प्रमुखता से प्रकाशित किया। शुक्रिया नितिन सिंघवी जी का जिन्होंने मेरी तस्वीरों के जरिये हाथी की पीड़ा, और मेरी मंशा को समझा। मेरी कोशिश सिर्फ इतनी थी की बेजुबान हाथी पर हो रहे जुल्म को रोका जाए। उसके जख्मों पर प्रताड़ना की बजाए राहत का मलहम लगाया जाए। मैं 16 जनवरी 2016 को एक बार फिर हाथी की खैर-खबर लेने पहुंचा। इस बार मामला पहले से ज्यादा गंभीर दिखा। मैंने फिर से कुछ तस्वीरें लीं। इस बार हाथी के तीन पैर एकदम जख्मीं और गलते हुए नज़र आये। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को पार कर चुके वन अफसरों को शायद ये सब नहीं नज़र आ रहा था। इस बार की तस्वीर और नितिन जी की कोशिश रंग ले आई। उन्होंने 20 जनवरी 2016 को हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई जिस पर कल यानी 21 जनवरी 2016 को माननीय न्यायालय ने सुनवाई करते हुए हाथी के इलाज और उसकी रिहाई के आदेश दिए हैं।        [ 22 जनवरी 16 ] 

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दैनिक छत्तीसगढ़ में 23 मार्च 18 को प्रकाशित एक तस्वीर